ये बेबसी तो उमूमन ही साथ होती है हमारे सामने जब उस की ज़ात होती है हर एक बात कि जिस में तुम्हारा ज़िक्र नहीं वो जैसे दूसरे मस्लक की बात होती है हमारे गाँव में सूरज ग़ुरूब हो कि न हो किसी के आँख लगाने से रात होती है मिरे हुरूफ़ मिरा ज़ब्त नोच खाते हैं तिरे ख़याल की जब वारदात होती है अजब तरह से मैं सब को पछाड़ता हूँ मगर अजब तरह से हमेशा ही मात होती है ये ख़ामुशी है तिरी आँख की फ़ुसूँ-कारी ये लफ़्ज़ तेरे लबों की ज़कात होती है बस इतना सोच के 'साहिर' मैं उस से कहता नहीं कि उस के ध्यान में शायद वो बात होती है