यही नहीं है कि शानों से ख़ून बहता है अभी तो अपनी मियानों से ख़ून बहता है वो गाल सुर्ख़ हुए हों तो यूँ लगें जैसे सफ़ेद रेशमी थानों से ख़ून बहता है ये ख़ामुशी वो बला है कि चीख़ उट्ठे अगर तो सुनने वालों के कानों से ख़ून बहता है हमारे ख़्वाब पटकते हैं यूँ हमारे सर तमाम रात सिरहानों से ख़ून बहता है वो जंग जीत के ऊँटों का रुख़ बदलने लगे अभी तो उन की मचानों से ख़ून बहता है ये अपने दौर के सब से बड़े मुनाफ़िक़ हैं इसी लिए तो ज़बानों से ख़ून बहता है तमाम वक़्त गुज़रता है ज़ख़्म सहलाते तरह तरह के बहानों से ख़ून बहता है हमें तो इल्म सिखाया नहीं है थोंपा है हमारे इल्मी ख़ज़ानों से ख़ून बहता है न जाने कितने ज़माने गुज़र गए साहिर न जाने कितने ज़मानों से ख़ून बहता है