ये दर्द रहे दिल में ये ज़ख़्म-ए-वफ़ा रखना अल्लाह मोहब्बत की खेती को हरा रखना दस्तक भी न दे कोई और घर में चला आए इस तरह न तुम दिल का दरवाज़ा खुला रखना उलझेगी तो फिर गुत्थी सुलझाए न सुलझेगी जो बहस छिड़े उस का क़ब्ज़े में सिरा रखना करतीं भी हवाएँ क्या फ़ितरत के मुनाफ़ी था रौशन किसी मुफ़्लिस की कुटिया में दिया रखना मैं ज़ीस्त के ख़ाके में भर दूँगा लहू से रंग तुम फूल से हाथों पर तहरीर-ए-हिना रखना जिस ने सफ़-ए-बातिल की आँखें न चमकने दीं सुरमे की जगह उस की ख़ाक-ए-कफ़-ए-पा रखना 'मसऊद' के होंटों पर शिकवा न तिरा आए जिस हाल में भी रखना राज़ी-ब-रज़ा रखना