ये दौलत रुत्बा शोहरत और ये ईमान मिट्टी है लगाया हाथ तब जाना फ़लक बे-जान मिट्टी है लगी जब आग पत्तों में शजर तब रो पड़ा ग़म में कहा फिर शाख़ ने हर शय यहाँ नादान मिट्टी है लिखूँ मैं फ़लसफ़े की शाइरी या गीत उल्फ़त के मैं शाइ'र हूँ मिरी हर नज़्म का उन्वान मिट्टी है किताब-ए-हिज्र में मैं अब लिखूँगा वस्ल के क़िस्से मोहब्बत में मिला है जो मुझे तावान मिट्टी है नहीं मा'लूम हसरत से मैं मिट्टी देखता हूँ क्यों मुझे शायद ख़बर है कुल मिरी पहचान मिट्टी है दिखाता खेल है सब को 'अज़ल' बन कर मदारी और तमाशा देखता है जो वो हर इंसान मिट्टी है