ये दिल ही जल्वा-गाह है उस ख़ुश-ख़िराम का देखा तो सिर्फ़ नाम है बैत-उल-हराम का मा'नी में लफ़्ज़ एक है ये रब्ब-ओ-राम का हासिल ये है कि है वही हासिल कलाम का देखा तो सब हक़ीक़त-ओ-मा'नी में एक हैं सूरत में गरचे फ़र्क़ है आपस में नाम का उस ला-मकाँ का कोई मुअय्यन नहीं मकाँ गर है तो दिल ठिकाना है उस के मक़ाम का मसरूर तेरी मय से इक आलम है साक़िया उम्मीद-वार मैं भी हूँ दो एक जाम का आग़ाज़-ए-इश्क़ में गया दिल हाथ से मिरे अंजाम क्या हो देखिए अब मेरे काम का लेते हैं चूर करने को ही संग-दिल हुज़ूर किया है वगर्ना शीशा-ए-दिल उन के काम का