ये दिया ख़ूँ से जला फिर भी जला है तो सही लाख रस्मन ही मिला मुझ से मिला है तो सही अन-कही बात समझ लो तो बड़ी बात है ये मेरी ख़ामोश नवाई में सदा है तो सही डगमगाता मुझे देखे तो सहारा दे कोई ये जो लग़्ज़िश है तो लग़्ज़िश का मज़ा है तो सही भीगी आँखें ये बताती हैं कि सुन कर मिरा हाल कुछ न कुछ तुझ को भी एहसास हुआ है तो सही कहें मग़रूर को बदमस्त मगर सच ये है इंकिसारी में भी अपना ही नशा है तो सही ज़िंदगी भर मिरी हस्ती में रचा हो जैसे तुझ को देखा नहीं महसूस किया है तो सही काविश-ए-ज़ीस्त है क्या अपनी ही हस्ती की तलाश ख़ुद को पा लेना ही इंसाँ का सिला है तो सही है जो आज़ुर्दगी उस की दम-ए-रुख़्सत 'आदिल' तुझ को अंदाज़ा-ए-तजदीद-ए-वफ़ा है तो सही