ये गर्दिश-ए-हालात ये अफ़्कार-ए-ज़िंदगी कट जाए जैसे भी हो शब-तार-ए-ज़िंदगी रखता है उस को कितने मसाइल में घेर कर आज़ाद हो न जाए गिरफ़्तार-ए-ज़िंदगी अब और क्या निसार करें तुझ पे ऐ हयात सब कुछ लुटा चुके सर-ए-बाज़ार-ए-ज़िंदगी मैं क्या कहूँ कि शर्म सी आती है दोस्तों जब देखता हूँ पस्ती-ए-किरदार-ए-ज़िंदगी क्या देखते ही देखते सब कुछ बदल गए रफ़्तार-ए-ज़िंदगी न वो गुफ़्तार-ए-ज़िंदगी क्या ख़ाक कम हों 'ताज' ये आलाम-ए-रोज़गार है ज़िंदगी के साथ ये आज़ार-ए-ज़िंदगी