ये हिज्र का रास्ता है जिस पर मैं तन्हा तन्हा सी चल रही हूँ बस उस की यादों की धूप है और मैं क़तरा क़तरा पिघल रही हूँ ये वस्ल-लम्हों की रौशनी है जो दिल की दुनिया में आ बसी है महकती यादों की चाँदनी है मैं जिस की किरनों से जल रही हूँ रह-ए-वफ़ा में भटकती रहती जो तेरे सपनों में गुम न रहती तिरे ख़यालों में जी रही हूँ तिरे तसव्वुर में ढल रही हूँ शिकस्ता-ख़्वाबों की किर्चियाँ हैं जो मेरी आँखों में चुभ रही हैं मैं ख़ार-ज़ारों में चल रही हूँ मैं गिरते गिरते सँभल रही हूँ ज़माने भर की ये तल्ख़ियाँ हैं जो मेरे लहजे में आ बसी हैं मैं अपने शे'रों में धीरे धीरे ये ज़हर-ए-माया उगल रही हूँ करूँगी क्या बाल-ओ-पर को अपने क़फ़स में जीना जो लाज़मी है कहाँ है 'शाहीन' शादमानी दुखों की दुनिया में पल रही हूँ