ये हिमाक़त मिरे इदराक पे छाई हुई है आँसुओं से तिरे तस्वीर बनाई हुई है अर्श हिलने का सबब पूछते क्या हो मुझ से इक दुआ हल्क़ा-ए-तासीर में आई हुई है चाँद मद्धम है दिए चुप हैं सहर रूठ गई क्या मिरे ग़म में गिरफ़्तार ख़ुदाई हुई है तुम तो बस तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ के लिए आ ही गए अब के इस दिल ने मगर बात बढ़ाई हुई है मुन्कशिफ़ होने लगा ख़ून हथेली पे मिरे एक लड़की की हथेली जो हिनाई हुई है इतनी वहशत कि हवस वज्द में आने से रही इक सदा जानिब-ए-अफ़्लाक से आई हुई है छू लूँ होंटों से तो दरिया को भी सहरा कर दूँ प्यास तेरी मिरे होंटों पे समाई हुई है शहर-ए-वीरान अब आबाद हुआ चाहता है आज इस पंछी की पिंजरे से रिहाई हुई है बारिश-ए-अश्क में बह जाएगा अब शहर का शहर आज 'आफ़ाक़' कोई चीज़ पराई हुई है