ये इख़्लास-ए-गराँ-माया बहुत है तुम आए दिल को चैन आया बहुत है ग़म-ए-दिल को बहुत रास आए हैं हम ग़म-ए-दिल हम को रास आया बहुत है फ़रेब-ए-दुश्मनाँ हम खाएँगे क्या फ़रेब-ए-दोस्ताँ खाया बहुत है मुबारक तुम को क़स्र-ओ-चत्र-ए-शाही हमें दीवार का साया बहुत है बहुत हम ने भी समझाया है दिल को हमें भी दिल ने समझाया बहुत है उसी दुनिया को हम अपना रहे हैं कि जिस ने हम को ठुकराया बहुत है ख़ुदा रखे उसे दिल-शाद 'साहिर' कि उस ने हम को तड़पाया बहुत है