ये इम्तिहान-ए-वफ़ा है ऐ दिल गिला न कर उन की बे-रुख़ी का तड़प से मतलब फ़ुग़ाँ से हासिल वक़ार खो देगा आशिक़ी का हुए जो मसहूर-ए-हुस्न-ए-रंगीं तो ज़ौक़-ए-शे'री ने चुटकियाँ लीं फ़रेब-ए-उल्फ़त में आ गए हम तो लग गया रोग शायरी का न बे-ख़ुदी है न होशियारी अजीब कुछ कैफ़ियत है तारी ख़बर है उन की न होश अपना ये कौन सा रुख़ है ज़िंदगी का बुला रही हैं हमें बहारें वो गुनगुनाती हुई फुवारें चलो करें मिल के सैर-ए-गुलशन कभी तो मानो कहा किसी का नज़र रही सब की रंग-ओ-बू पर गुज़र गया हम पे हश्र 'जौहर' किसी ने देखा न शीशा-ए-दिल चमन में हँसती हुइ कली का