ये इश्क़ भी अजीब है इक आन हो गया इंसान सारी उम्र को हैरान हो गया वो शख़्स क्या गया है इधर से कि शहर-ए-दिल फिर देखते ही देखते वीरान हो गया इस ग़म ने कैसी शक्ल बदल ली कि कल तलक दुश्मन था मेरी जान का अब जान हो गया वो ज़ुल्फ़ मेरे बाज़ू पे बिखरी नहीं तो मैं उस ज़ुल्फ़ से ज़ियादा परेशान हो गया है सल्तनत ही मेरी न लश्कर मिरा मगर मैं बद-नसीब जंग का मैदान हो गया मैं उस को ज़िंदा देख के ख़ुश हो गया 'शफ़क़' वो मुझ को ज़िंदा देख के हैरान हो गया