ये जाम-ओ-बादा-ओ-मीना तो सब दिलासे हैं लबों को देख वही उम्र-भर के प्यासे हैं करो जो याद तो हम से भी निस्बतें हैं तुम्हें वो निस्बतें जो कफ़-ए-पा को नक़्श-ए-पा से हैं ज़रा में ज़ख़्म लगाए ज़रा में दे मरहम बड़े अजीब रवाबित मिरे सबा से हैं तिरे बग़ैर भी कटती रही ज़रा न रुकी शिकायतें मुझे उम्र-ए-गुरेज़-पा से हैं न बह सकीं तो रगों में रवाँ-दवाँ नश्तर निकल बहीं तो ये आँसू ज़रा ज़रा से हैं