ये ज़िंदगी है कि आसेब का सफ़र है मियाँ चराग़ ले के निकलना बड़ा हुनर है मियाँ पता चले जो मोहब्बत का दर्द ले के चलो मिरे मकाँ की गली कितनी मुख़्तसर है मियाँ नहाएँगी मिरी ज़ौ में हज़ार-हा सदियाँ मैं वो चराग़ नहीं हूँ जो रात भर है मियाँ तुम्हारी रात पे इतना ही तब्सिरा है बहुत मकीं अँधेरे में हैं चाँदनी में घर है मियाँ लिखा है वक़्त ने सदियों सफ़र के बा'द उसे ये दौर झूट सही फिर भी मो'तबर है मियाँ मिलेगी राख न तुम को हमारे चेहरे पर बदन में रह के सुलगना बड़ा हुनर है मियाँ अब इंतिज़ार की ताक़त नहीं रही 'क़ैसर' कुछ और रोज़ न सोचा तो सब खंडर है मियाँ