ये जल्वा-गह-ए-ख़ास है कुछ आम नहीं है कमज़ोर निगाहों का यहाँ काम नहीं है जिस में न चमकते हों मोहब्बत के सितारे वो शाम अगर है तो मिरी शाम नहीं है क्या जाने मोहब्बत की है ये कौन सी मंज़िल वो साथ हैं फिर भी मुझे आराम नहीं है तुम सामने ख़ुद आए नवाज़िश ये तुम्हारी अब मेरी नज़र पर कोई इल्ज़ाम नहीं है अफ़सोस वो कब मेरी नज़र देख रहे हैं जब मेरी नज़र में कोई पैग़ाम नहीं है शायद कि 'नज़ीर' उठ चुका अब दिल का जनाज़ा अब साँस के पर्दों में वो कोहराम नहीं है