कुछ इस क़दर है परेशाँ नफ़स नफ़स मेरा मैं ज़िंदगी को उलट दूँ चले जो बस मेरा कहाँ कहाँ न गया हाल-ए-दिल सुनाने को बना न कोई कहीं फिर भी दाद-रस मेरा लिए फिरूंगा हमेशा मैं उस की ख़ाकिस्तर रहेगा साथ मिरे जल के भी क़फ़स मेरा मैं सोचता हूँ मआल-ए-हयात क्या होगा बजा है ज़ब्त-ए-मोहब्बत में पेश-ओ-पस मेरा किसी के साथ 'मुनव्वर' किया हो कुछ भी सुलूक मैं चाहता हूँ कि गाए न कई जस मेरा