ये ज़मीं हूँ वो आसमाँ भी हूँ मैं यहाँ भी हूँ मैं वहाँ भी हूँ मर्तबा मेरा जो भी है सो है बहुत अच्छा हूँ मैं जहाँ भी हूँ मुझ से बाहर मिरा सुराग़ नहीं मैं कि मंज़िल भी हूँ निशाँ भी हूँ तन-ए-तन्हा भी गामज़न हूँ और साथ सब के रवाँ-दवाँ भी हूँ मुझ से मेरे सिवा न कुछ भी माँग मैं सफ़र भी हूँ अर्मुग़ाँ भी हूँ ज़रा आगे निकल के देखूँ अगर मैं कोई याद-ए-रफ़्तगाँ भी हूँ ज़िंदगी की हूँ बे-निशानी भी मैं किसी गोर का निशाँ भी हूँ फ़ख़्र भी है कि फिर भी हूँ 'बेताब' अपनी हस्ती से बद-गुमाँ भी हूँ