ये ज़रूरी नहीं है जहाँ देखना वो जिधर को चले बस वहाँ देखना उन की क़िस्मत में थी ऐसी मंज़र-कशी पंखुड़ी से लबों पर धुआँ देखना कोई आता नहीं कोई जाता नहीं ऐसा सुनसान कोई निशाँ देखना पेड़ ने अपने फल को सिखाया नहीं दूसरों के घरों में अमाँ देखना ले गया जो बिछड़ के मिला था अभी ऐसे आलम में दिल का समाँ देखना उम्र कहती है छोड़ो बुरा ये चलन चलते-फिरते नज़र से जवाँ देखना मैं तरसता रहा तेरे मिलने को यार तू कहाँ है 'ज़मीर' अब कहाँ देखना