ये जौर-ए-दस्त-ए-ज़माना कहा कहा न कहा कि दिल का हाल कभी आप ने सुना न कहा जो बात तुम से थी कहनी फ़क़त तुम्ही से कही हर एक बज़्म में ये दिल का माजरा न कहा ये लोग राई का पर्बत बना रहे यूँही तिरे रवय्ये को हम ने तो नारवा न कहा ख़ुदा का शुक्र सितम नागवार भी न लगे ख़ुदा का शुक्र कभी तुम को बेवफ़ा न कहा उसे नहीं है शिकायत तो दूसरी कोई उसे गिला है कि क्यों हासिल-ए-दुआ न कहा ख़लिश सी ज़ेहन में ले कर हमेशा फिरता रहा सितम को जब भी बुरा मैं ने बरमला न कहा 'वली' ग़रीबी में कम तो नहीं है ये ए'ज़ाज़ ज़मीं के बंदे बशर को कभी ख़ुदा न कहा