ये जुनूँ ही सही पूरा मगर अरमाँ कर दो अपने हाथों से मिरा चाक गरेबाँ कर दो बात तो जब है कि बेगाना-ए-दरमाँ कर दो अब परेशाँ ही किया है तो परेशाँ कर दो नश्तर-ए-नीम-निगाही की क़सम है तुम को दिल के हर ज़ख़्म को तस्वीर-ए-गुलिस्ताँ कर दो तुम समा जाओ मिरी रूह में नग़्मा बन कर आओ साज़-ए-दिल-ए-ग़मगीं को ग़ज़ल-ख़्वाँ कर दो या तो तुम हद्द-ए-तअ'य्युन पे रहो जल्वा-फरोज़ या मिरी ताब-ए-नज़र ता-हद-ए-इम्काँ कर दो नज़्अ' का वक़्त है आ जाओ अयादत के लिए तुम 'शिफ़ा' पर दम-ए-आख़िर यही एहसाँ कर दो