ये कैफ़-ए-हुस्न उस पे ये मस्ती शबाब की ये आप हैं कि मौज है कोई शराब की सूनी है बज़म-ए-आलम-ए-इमकां तिरे बग़ैर ज़ुल्मत है रौशनी भी शब-ए-माहताब की क्यों मेरी लग़्ज़िशों प ज़माना है ता'ना-ज़न सब लग़्ज़िशें मुआ'फ़ हैं अहद-ए-शबाब की ज़ौक़-ए-सलीम चाहिए शाइ'र के वास्ते हाजत है मय-कशी की न फ़न पर किताब की वो सर्द सर्द आहें वो अख़्तर-शुमारियाँ दिलचस्पियाँ थीं ये मिरे अहद-ए-शबाब की जज़्बात-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ से लबरेज़ ये ग़ज़ल तस्वीर है किसी दिल-ए-ख़ाना-ख़राब की कैफ़-आफ़रीं है मेरा ग़म-ए-इश्क़ ऐ 'बहार' लज़्ज़त न मुझ से पूछ तू ऐसे अज़ाब की