वो बे-खु़द-ए-शबाब वो सीमीं-बदन कहाँ मैं ग़म-नसीब कुश्ता-ए-रंज-ओ-महन कहाँ दिल में किसी की याद ने फिर ली हैं चुटकियाँ आँखों में छुप गया है वो ग़ुंचा-दहन कहाँ दुनिया-ए-रंग-ओ-बू में उसी का था एहतिमाम वो गुल-बदन नहीं तो बहार-ए-चमन कहाँ आराम आ चुका है दिल-ए-बे-क़रार को अगली सी वो ख़लिश वो कसक वो चुभन कहाँ फ़िक्र-ए-मआ'श ने हमें सब कुछ भुला दिया अब वो बिसात-ए-ऐश वो बज़्म-ए-सुख़न कहाँ मरते हैं अब भी बादा-ओ-शाहिद के नाम पर अहल-ए-वतन में जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन कहाँ सारा जहान अपना वतन अब तो है 'बहार' क्यों मुझ से पूछिए कि है मेरा वतन कहाँ