ये क़िस्सों में जो दुख उठाने बंधे हैं सो उल्फ़त ही के सब फ़साने बंधे हैं क़फ़स में सुनो लो असीरान-ए-कोहना ब-हर-शाख़-ए-नौ आशियाने बंधे हैं ख़ुदा जाने इस घर में क्या है कि जिस के कई दर के आगे दिवाने बंधे हैं वो आँसू हैं अपने कि सब की गिरह में कई मोतियों के ख़ज़ाने बंधे हैं हवा ये दयार-ए-मोहब्बत की बिगड़ी कि सब रहने वालों के शाने बंधे हैं मुलाक़ात क्या हो रहे ठौर बस हम कि जाने के वाँ तो ठिकाने बंधे हैं लगें क्यूँ न तीर-ए-निगह दिल जिगर पर कि उस चश्म के ये निशाने बंधे हैं फ़लक तेरे हाथों बड़े थे जो दाना सो अब उन के पल्लों में दाने बंधे हैं ग़ज़ब सादा-रूयों की है सादगी भी कि फेंटे अजब सूफ़ियाने बंधे हैं हुई घर में शादी तुम्हारे तो ऐसी कि जिस के जहाँ में फ़साने बंधे हैं न बुलवाने का हम को शिकवा है देखो बंधन-वार अब तक पुराने बंधे हैं बख़ील अब ये मुनइम नहीं क्यूँकि 'जुरअत' कसे जिन के ख़्वानों में खाने बंधे हैं