ये ख़ूब-रू न छुरी ने कटार रखते हैं निगाह-ए-लुत्फ़ से आलम को मार रखते हैं चराग़-ए-गोर न शम-ए-मज़ार रखते हैं बस एक हम ये दिल दाग़दार रखते हैं शराब-ए-इश्क़ न ऐ दोस्त पीजियो हरगिज़ इसी नशे का हम अब तक ख़ुमार रखते हैं मिरी ज़बानी कोई उस से इस क़दर पूछे कहीं ये झूटे भी वादे शुमार रखते हैं क़यामत आ चुकी दीदार-ए-हक़ हुआ सब को हम अब तलक भी तिरा इंतिज़ार रखते हैं अगरचे ख़ाक बराबर किया फ़लक ने 'बयाँ' दिमाग़ पर वही हम ख़ाकसार रखते हैं