ये किस डगर पे अपना मुक़द्दर है आज-कल अपने ही हक़ में अपना सितमगर है आज-कल गिर जाए कब ये जिस्म की दीवार क्या कहें उखड़ा सा साँस साँस का पत्थर है आज-कल अब देखना है शहर में किस किस का सर उड़े क़ातिल हवा के हाथ में ख़ंजर है आज-कल ज़ख़्मों के चाँद दर्द के सूरज ग़मों की धूप बस्ती हमारे दिल की मुनव्वर है आज-कल सड़कों पे मौत फिरती है नंगा बदन लिए घर घर अजब हिरास का मंज़र है आज-कल हम जुस्तुजू में निकले हैं दरियाओं की 'नज़ीर' और गिर्द-ओ-पेश प्यास का लश्कर है आज-कल