ज़मीन मेरी थी और आसमान मेरा था ये कल की बात है सारा जहान मेरा था जहाँ से राह निकाली है आज लोगों ने इसी सड़क के किनारे मकान मेरा था मैं आज साए की हसरत लिए भटकता हूँ बुलंदियों पे कभी साएबान मेरा था दहकती रेत है राहों में आज तो क्या है क़दम क़दम कभी जन्नत-निशान मेरा था मिला जो नुत्क़ उसे बट गया हज़ारों में वो जब तलक भी रहा बे-ज़बान मेरा था मैं चेहरा चेहरा उसे ढूँढता रहा लेकिन वो सामने था अजब इम्तिहान मेरा था जहाँ में आज हूँ मक़्तूल-ए-बे-गुनाह 'नज़ीर' हर एक शख़्स वहाँ पासबान मेरा था