ये किस का जल्वा-ए-हैरत-फ़ज़ा निगाह में है कि पा-ए-शौक़ गुज़रगाह-ए-मेहर-ओ-माह में है हज़ार मंज़िल-ए-राह-ए-जुनूँ तमाम हुई हज़ार मंज़िल-ए-अहल-ए-जुनूँ निगाह में है बुलंदियों से गुज़र कर ख़िरद का हाल न पूछ बस इक ग़ुबार-ए-तहय्युर लिए निगाह में है अज़ीज़-तर तिरी बातें कि इस सुकूत के साथ तमाम शोख़ी-ए-लफ़्ज़-ओ-बयाँ निगाह में है फ़रोग़-ए-जल्वा-ए-उम्मीद तेरी उम्र दराज़ सियाह रात है सर पर सहर निगाह में है किस एहतिमाम से है आमद-ए-उरूस-ए-सहर कि आहटों का तरन्नुम तमाम राह में है कहाँ है ताब-ए-नज़र अहल-ए-दिल की महफ़िल में किसे मजाल-ए-सुख़न उन की बारगाह में है