ये क्या हुआ तुम्हें लफ़्ज़ों से मात खाने लगे सवाल हम ने किया और नज़र झुकाने लगे सफ़र में हौसला दरकार है हर इक सूरत ये क्या कि चार-क़दम पर ही डगमगाने लगे अभी तो घर मिरा पूरी तरह जला भी नहीं जो हाथ सेंक रहे थे वो उठ के जाने लगे जब उन से फ़ासला हम ने बढ़ाया तो ये हुआ वो दूर होते हुए भी क़रीब आने लगे अभी तो उन से शनासाई भी नहीं मेरी अभी से लोग इधर की उधर उड़ाने लगे