ये क्या कहा मुझे ओ बद-ज़बाँ बहुत अच्छा सुना ली और भी दो गालियाँ बहुत अच्छा तुम्हें तो और भी अश्ख़ास प्यार करते हैं हमें ये जौर-ओ-जफ़ा मेहरबाँ बहुत अच्छा किसी पे यूँ नहीं पड़ती निगाह-ए-ख़ून-आ-शाम हमीं हैं तीर-ए-सितम के निशाँ बहुत अच्छा न हो दो-चार न बोलो न इख़्तिलात करो बहुत बजा बहुत इंसब मियाँ बहुत अच्छा जो मैं बुरा तो बुरा और सब तो अच्छे हैं मिलो जहाँ से जान-ए-जहाँ बहुत अच्छा बुरा भला हमें कहने से फ़ाएदा क्या है चमन से जाते हैं ऐ बाग़बाँ बहुत अच्छा हमारे रहने से तुझ को जो आग लगती है जलाए देते हैं हम आशियाँ बहुत अच्छा कभी जो रोते हैं झुँझला के यार कहता है मैं सुन रहा हूँ करो तुम फ़ुग़ाँ बहुत अच्छा ख़फ़ा न हो न करूँगा बका बहुत बेहतर न होंगे अब कभी आँसू रवाँ बहुत अच्छा जो ज़िंदगी है तो जीता रहूँगा फ़ुर्क़त में सद हारिए मिरी आराम-ए-जाँ बहुत अच्छा निसार ला कि सर ऐसे तुम्हारी क़दमों पर करेंगे आप मिरा इम्तिहाँ बहुत अच्छा ख़ुदा ने नूर के साँचे में तुझ को ढाला है हज़ार में है तू ऐ नौजवाँ बहुत अच्छा मिरे निगाह में तू हूर से कहीं बेहतर है मक़ाम-ए-ख़ुल्द से तेरा मकान बहुत अच्छा बहुत पसंद है मुझ को ये बोल-चाल ए 'बहर' क़सम ख़ुदा की ये तर्ज़-ए-बयाँ बहुत अच्छा