ये क्या ख़बर है कि वो बे-ख़बर नहीं आता हमें तो होश ही दो-दो पहर नहीं आता तुम्हारी चाल के फ़ित्ने भी हैं क़यामत के कि जिन के ख़ौफ़ से महशर इधर नहीं आता तमाम उम्र अगर आब-ए-अश्क से सींचें उमीद के तो शजर में समर नहीं आता वो पान खा के रक़ीबों को दे रही हैं उगाल इलाही क्यों मिरे मुँह को जिगर नहीं आता ज़कात-ए-हुस्न निकालो उठाओ लुत्फ़-ए-शबाब ये वक़्त जा के तो फिर उम्र भर नहीं आता दिया मरीज़-ए-मोहब्बत को नुस्ख़ा-ए-तप-ए-दिक़ तुझे इलाज भी ऐ चारागर नहीं आता भला मैं और ख़ुशामद करूँ रक़ीबों की वही बताते हो जो काम कर नहीं आता वो बे-नक़ाब हैं इस्तादा ग़ैर के आगे और आफ़्ताब सवा नेज़े पर नहीं आता ये क्या मोहब्बत-ओ-उल्फ़त कि बाद मरने के कोई मज़ार में लेने ख़बर नहीं आता हरम में ज़ाहिदो क्या दिल बहलने की सूरत लगाओ लाख मैं उस राह पर नहीं आता कहा था ग़ैर से क्या मुझ को देख कर तुम ने और उस पे कहते हो मुझ को तो शर नहीं आता निवाला मुँह का नहीं फ़न्न-ए-शाइरी ऐ 'बज़्म' ये काम वो है कि जो उम्र भर नहीं आता