ये क्या लुत्फ़-ए-शोर-ए-फ़ुग़ाँ रह गया ज़मीं रह गई आसमाँ रह गया अभी नामा-बर को रवाना किया अभी कह रहा हूँ कहाँ रह गया तिरे लुत्फ़ ने की यहाँ तक कमी जो पहले यक़ीं था गुमाँ रह गया मिले ख़ाक में यूँ कि मशहूर है मिटे यूँ कि मिटना निशाँ रह गया वही गर्दिशें हैं वही चाल है सितम कौन सा आसमाँ रह गया रही आश्नाई फ़क़त नाम की वो नाम आश्ना-ए-ज़बाँ रह गया मैं वामाँदा और कह रहा है जरस रहा जो पस-ए-कारवाँ रह गया मिरा नाला बर्क़-ए-जहाँ-सोज़ है अगर यूँ ही आतिश-फ़िशाँ रह गया बहुत दूर पहुँचें निगाहें वले वो पर्दे में अब भी निहाँ रह गया ये काहिल हूँ 'सालिक' ग़म-ए-हिज्र से वहीं का रहा मैं जहाँ रह गया