ये लम्हात-ए-नौ मेरा क्या ले गए कुछ आँसू गिरे थे उठा ले गए नदी नाले क़द्रें बहा ले गए वफ़ा ले गए मुद्दआ' ले गए किसे ढूँडते हो खड़ी नाव पर सभी फ़ासले ना-ख़ुदा ले गए ये कैसे झकोले थे पिंदार के मुझे पँख दे कर उड़ा ले गए चुना रहनुमा उन को ये क्या किया कहाँ से कहाँ नक़्श-ए-पा ले गए घर आँगन में सोने का सूरज कहाँ किरन तक पड़ोसी चुरा ले गए लबों पर कहीं 'काली-दास' अब नहीं बड़े नाम 'गुप्ता-रज़ा' ले गए