ये मिरे ख़्वाब की ता'बीर नहीं हो सकती आप के हाथ में शमशीर नहीं हो सकती मुझ पे तन्हाई में हैरत का ग़ज़ब खुलता है अब मिरे दर्द की तश्हीर नहीं हो सकती देख कर शहर को वीरान ये सूरज ने कहा वक़्त के पाँव में ज़ंजीर नहीं हो सकती तुझ को छूने से मचलता है ये ख़ुशबू सा बदन मुझ से अब इश्क़ में तक़्सीर नहीं हो सकती घर की दीवार पे इतराती गिलहरी देखो ये किसी तौर भी तस्वीर नहीं हो सकती इस ज़माने को नई राह दिखानी है मुझे अब कहीं कोई भी ताख़ीर नहीं हो सकती