ये मिरा वहम तो कुछ और सुना जाता है इक गुमाँ है कि तिरा अक्स दिखा जाता है एक तस्वीर दिल-ए-हिज्र-ज़दा में है तिरी एक तस्वीर कोई और बना जाता है तेरी मिन्नत भी मिरी जाँ बड़ी की जाती है ज़ेर-ए-लब एक वज़ीफ़ा भी पढ़ा जाता है चाँद ने मुझ पे कमाँ एक तनी होती है तीर लगता नहीं किस ओर चला जाता है तू जो आता है महकता हूँ गुलाबों की तरह और तिरा ख़्वाब जब आता है रुला जाता है जानता हूँ न तअ'ल्लुक़ न ज़रूरत है तुझे तुझ को ये कौन मिरे पास बिठा जाता है इक जवाँ उस की गली में जो गया मारा गया ये फ़साना है मगर किस से सुना जाता है