ये मोहब्बत भी इक सज़ा तो है दिल-ए-मासूम की ख़ता तो है शुक्र है घर में आईना तो है गुफ़्तुगू के लिए ख़ला तो है इश्क़ के आसमाँ पे जा पहुँचा लग गई है उसे हवा तो है ज़ख़्म मिल भी गए तो क्या ग़म है तेरा होना भी इक दवा तो है जब लबों पर हँसी नुमायाँ हो समझो पीछे कोई दुआ तो है फ़ासले यूँ नहीं हुआ करते दरमियाँ कुछ न कुछ हुआ तो है