मैं हूँ और मश्ग़ला-ए-जामा-दरी है याहू कैफ़-दर-कैफ़ अजब बे-ख़बरी है या-हू हर तरफ़ सहर-ए-नफ़ी ख़ौफ़-ए-अबद तारी है जान लेवा ये बलीग़-उन-नज़री है याहू हस्त-दर-हस्त हिजाबात के सहरा ठहरे क्या ये तशरीह-ए-मक़ाम-ए-बशरी है याहू पूरी क़ुव्वत से न क्यूँ दौड़ूँ अबद की जानिब ज़ीस्त इक आलम-ए-अफ़रातफ़री है याहू इक सँवरता हुआ लम्हा तो कहीं मिल जाता देख चेहरे पे मिरे दर-ब-दरी है याहू ईन-ओ-आँ जब मेरे पुरकार की गर्दिश के असीर फिर ये क्यूँ किस लिए दरयूज़ा-गरी है याहू मेरे अफ़्कार हैं इबलाग़-गज़ीदा तो क्या एक नए तौर की ये दीदा-वरी है याहू