ये मोहब्बत की जवानी का समाँ है कि नहीं अब मिरे ज़ेर-ए-क़दम काहकशाँ है कि नहीं दामन-ए-रिन्द-ए-बला-नोश को देख ऐ साक़ी पर्चम-ए-ख़्वाजगी-ए-कौन-ओ-मकाँ है कि नहीं मुस्कुराते हुए गुज़रे थे इधर से कुछ लोग आज पुर-नूर गुज़र-गाह-ए-ज़माँ है कि नहीं हुस्न ही हुस्न है गुलज़ार-ए-जुनूँ में रक़्साँ इश्क़ का आलम-ए-सद-रंग जवाँ है कि नहीं राह पर आ ही गए आज भटकने वाले राहबर देख वो मंज़िल का निशाँ है कि नहीं लाख गिर्दाब-ओ-तलातुम से गुज़र कर ऐ दोस्त अब सफ़ीना मिरा साहिल पे रवाँ है कि नहीं तज़्किरे अपने हर इक बज़्म में हैं ऐ 'अख़्तर' आज मोहमल सी हदीस-ए-दिगराँ है कि नहीं