ये मुझे कैसा गुमाँ है कौन सी तश्कीक है दूर भी हो जाए तो लगता है तू नज़दीक है मैं तो तेरे बोलने पर ख़ुश हूँ ख़ुद पर फ़ख़्र कर तू मिरी चुप से दुखी है ये मिरी तज़हीक है सब को देने वाले अब तो हक़-रिसानी कर मिरी वर्ना तब तक जो मिलेगा मैं कहूँगा भीक है देख मेरी चश्म-ए-बद का तीरगी से इख़्तिलात देख मेरी आँख में हर रौशनी तारीक है उम्र कहने में लगा दी और फिर हम पर खुला शे'र कहना इश्क़ नईं है बल्कि इक तकनीक है आगे आगे जाएँगे तो जल्द मर जाएँगे हम ज़िंदगी की दौड़ में पीछे ही रहना ठीक है