ये नहीं हम को शिकायत आप क्यों आते नहीं आप आते हैं मगर हम आप को पाते नहीं कुछ समझ कर ही हम उन की बज़्म में जाते नहीं दोस्ती का पास है दुश्मन से घबराते नहीं शुक्र है इतना तो है आशिक़-नवाज़ी का ख़याल पास से जाते हैं लेकिन दिल से वो जाते नहीं मुँह से कह सकते नहीं बस देखते हैं हर तरफ़ वो उठे पहलू से हम पहलू में दिल पाते नहीं आप आते हैं तो फ़ौरन खोल देते हैं हम आँख आप जाते हैं तो पहरों होश में आते नहीं दर-हक़ीक़त वस्ल है 'बेख़ुद' हमारी बे-ख़ुदी उन को पाते हैं तो अपने आप को पाते नहीं