ये निसाबों में लिखी और लिखाई न गई ज़िंदगी हम को किताबों में पढ़ाई न गई एक-तरफ़ा भी निभाते हैं निभाने वाले तुझ से दो-तरफ़ा मोहब्बत भी निभाई न गई यूँ मिरा हाफ़िज़ा कमज़ोर बहुत है मुझ से एक लड़की है जो दिल्ली की भुलाई न गई उस के चेहरे पे नुमायाँ हैं मिरे हिज्र के दाग़ अल्लाह रखे उसे कैसे सर-ए-आईना गई जिस्म की प्यास किसी तौर बुझा लेते हैं रूह की प्यास मगर हम से बुझाई न गई भूक उगने लगी गंदुम की जगह खेतों में हाकिम-ए-वक़्त तिरी हर्ज़ा-सराई न गई नक्शा-ए-दहर में दो मुल्क हैं ऐसे जिन में मुद्दतों बा'द भी सरहद की लड़ाई न गई बानू-ए-शहर-ए-सुख़न 'मीर' का बोया काटा तेरे 'हाशिम' से नई फ़स्ल उगाई न गई