ये क़ुर्ब-ए-ख़ास अजब है कि फ़ासला न गया By Ghazal << ज़ात से ता-ब-हद-ए-ज़ात गु... तुलू-ए-मेहर ने फूलों की ज... >> ये क़ुर्ब-ए-ख़ास अजब है कि फ़ासला न गया तुम्हें ख़ुदा कहूँ सोचा तो था कहा न गया वही तो मेरे लिए शाहकार-ए-फ़ितरत है जो हादिसा मिरी तक़दीर में लिखा न गया वो मस्लहत थी कि उन के हुज़ूर लब न हिले ये हादिसा है कि दिल से भी कुछ कहा न गया Share on: