ये रात भयानक हिज्र की है काटेंगे बड़े आलाम से हम टलने की नहीं ये काली बला समझे हुए थे शाम से हम जब क़ैस पहाड़ इस सर से टले ईद आई तब आई जान में जान ता देर अजब आलम में रहे होंटों को मिलाए जाम से हम था मौत का खटका जाँ-फ़रसा सद शुक्र कि निकला वो काँटा गर हो न क़यामत का धड़का अब तो हैं बड़े आराम से हम ता-मंज़िल-ए-जानाँ साथ रहा कम-बख़्त तसव्वुर ग़ैरों का शौक़ अपने क़दम खींचा ही किया पल्टा ही किए हर गाम से हम उल्फ़त ने उन्हीं की हक़ की तरफ़ फेरा मिरे दिल को शुक्र-ए-ख़ुदा तामीर करें मस्जिद कोई क्यूँकर न बुतों के नाम से हम ऐ हम-नफ़सो दम लेने दो भूले हुए नग़्मे याद आ लें आए हैं चमन में उड़ के अभी छूटे हैं इसी दम दाम से हम बातों में गुज़रते हिज्र के दिन ऐ काश कि दोनों मिल जाते हम से है दिल-ए-नाकाम ख़फ़ा आज़ुर्दा दिल-ए-नाकाम से हम यूँ उन के अदब या ख़ातिर से हर बात को ले लें अपने सर जब दिल है उन्हीं के क़ाबू में फिर पाक हैं हर इल्ज़ाम से हम वो समझे कि हम ने मार लिया हम समझे मिलेंगे आख़िर वो मिलते ही निगह के दोनों ख़ुश आग़ाज़ से वो अंजाम से हम दुनिया में तख़ल्लुस कोई न था क्या नील का टीका 'शाद' ही था तुम वजह न पूछो कुछ इस की चिढ़ जाते हैं क्यूँ इस नाम से हम