ये सब कहने की बातें हैं हम उन को छोड़ बैठे हैं जब आँखें चार होती हैं मुरव्वत आ ही जाती है वो अपनी शोख़ियों से कोई अब तक बाज़ आते हैं हमेशा कुछ न कुछ दिल में शरारत आ ही जाती है न उलझो ताना-ए-दुश्मन पे ऐसा हो ही जाता है जहाँ इख़्लास होता है शिकायत आ ही जाती है लिया जब नाम उल्फ़त का बदल जाती है सीरत भी निगाह-ए-शर्म-आगीं में शरारत आ ही जाती है कभी चितवन से अन-बन है कभी सौदा है गेसू का नसीबों की ये शामत है कि शामत आ ही जाती है हमेशा अहद होते हैं नहीं मिलने के अब उन से वो जब आ कर लिपटते हैं मोहब्बत आ ही जाती है कहीं आराम से दो दिन फ़लक रहने नहीं देता हमेशा इक न इक सर पर मुसीबत आ ही जाती है हिसाब-ए-दोस्ताँ दर-ए-दिल तक़ाज़ा है मोहब्बत का मसल मशहूर है उल्फ़त से उल्फ़त आ ही जाती है