ये सब क़ुबूल जलाओ हमें बुझाओ हमें कहीं तो ले चलो सनकी हुई हवाओ हमें ज़मीं के क़द से भी छोटा ये आसमाँ निकला अब आसमाँ से ज़मीं पर उतार लाओ हमें अलग है अपनी अदा फूल भी हैं ख़ंजर भी वो आस्तीं हो कि दामन कहीं छुपाओ हमें इस आइने में चलो जाएज़ा ही लें अपना हमारे दौर का चेहरा ज़रा दिखाओ हमें क़दम क़दम वही बे-नाम मंज़िलों का सफ़र ख़बर नहीं कि है करना कहाँ पड़ाव हमें अभी तो साज़ के तारों को कस रहा है शुऊ'र अभी न क़र्या-ए-आवाज़ में बुलाओ हमें नहीं गुलाब कि रौनक़ बनेंगे आँगन की चमकती धूप में दीवार पर बिछाओ हमें चलो कि शर्त-ए-रिफ़ाक़त भी साथ छोड़ गई कभी जो याद भी आएँ तो भूल जाओ हमें अभी तो जू-ए-तुनुक-आब से ही हम भी 'फ़ज़ा' कहाँ मिला तिरे आहंग का बहाओ हमें