देखे शक्ल-ए-बर्क़-ए-आलम-ताब उस दिलदार की है ये दीदा है ये जुरअत नर्गिस-ए-बीमार की वो बुत-ए-नाकाम मुझ को देखने आता है कब नज़्अ' में पथरा गईं जब आँख मुझ बीमार की और तू लेगा नहीं कोई शब-ए-फ़ुर्क़त ख़बर आने जाने वाली बस इक साँस है बीमार की हैफ़ जीता हूँ न मरता हूँ तुम्हारे हिज्र में कश्मकश में जान है मुझ आशिक़-ए-बीमार की अब तो ले उस की ख़बर लिल्लाह ऐ ईसा-नफ़स है दिगर-गूँ इन दिनों हालत तिरे बीमार की इक नज़र तुम देख लो उस को तो सेहत है उसे आज़मूदा ये दवा है आँख के बीमार की इक नज़र उस को भी देखो हद से गुज़रा इंतिज़ार अब तो पथराई हैं आँखें नर्गिस-ए-बीमार की दिल फ़रिश्तों के दहल जाते हैं 'साबिर' ख़ौफ़ से अर्श तक जाती है जब फ़रियाद मुझ बीमार की