ये सच है बहम उस की मोहब्बत भी नहीं थी और तर्क मरासिम हों ये हिम्मत भी नहीं थी उस शख़्स की उल्फ़त में गिरफ़्तार ये दिल था जिस शख़्स को छूने की इजाज़त भी नहीं थी कुछ ज़ख़्म-ए-तमन्ना को न था शौक़-ए-मुदावा कुछ उस को मसीहाई की आदत भी नहीं थी थे राह-ए-मोहब्बत में पड़ाव कई लाज़िम क्या कीजिए रुकना मिरी फ़ितरत भी नहीं थी जो ख़्वाब-ए-शिकस्ता को अता हौसला करती हासिल वो जुनूँ-ख़ेज़ रिफ़ाक़त भी नहीं थी हर-चंद कि अफ़्सोस बिछड़ने का हमें था लेकिन मिलें हम फिर कभी हसरत भी नहीं थी वहशत में चराग़ाँ में तिरे क़ुर्ब से करता अफ़्सोस मयस्सर ये सुहूलत भी नहीं थी कुछ रास्ते दुश्वार मनाज़िल के थे और कुछ जज़्बों में 'ख़याल' अपने सदाक़त भी नहीं थी