ये सच नहीं कि तमाज़त से डर गई है नदी सुकून-ए-दिल के लिए अपने घर गई है नदी अभी तो पहने हुई थी लिबास-ए-ख़ामोशी ये क्या हुआ कि अचानक बिफर गई है नदी हमें ये डर है कि फिर से बिफर न जाए कहीं क़दम बढ़ाओ कि इस वक़्त उतर गई है नदी वो शख़्स तड़पा न चिल्लाया और मर भी गया पता चला नहीं कब वार कर गई है नदी नहीं मिली जो रिफ़ाक़त किसी समुंदर की तो रेज़ा रेज़ा सी हो कर बिखर गई है नदी न जाने आज तू इतनी मलूल सी क्यूँ है ये क्या हुआ कि तिरी आँख भर गई है नदी सुना सुना के ग़मों की कहानियाँ 'फ़िरदौस' मुझे तो और भी ग़मगीन कर गई है नदी