ये समझ के चलती हूँ तेरा नक़्श-ए-पा होगा मैं जहाँ से गुज़रूँगी तेरा सामना होगा वक़्त क्या बताएगा कौन किस का क़ातिल है अपने आप से इक दिन मुझ को पूछता होगा रूठने से क्या हासिल आप से मोहब्बत है आप जब भी आ जाएँ मेरा सर झुका होगा जिस जगह न तुम होगे जिस जगह न हम होंगे एक ऐसी मंज़िल पर क़ाफ़िला रुका होगा कितने साल बीते हैं अब भी तेरी आँखों में क्या ख़बर थी अश्कों का अब भी सिलसिला होगा 'नाज़' अपने लहजा को जब भी लोग तरसेंगे नाम मेरे होंटों पर सिर्फ़ आप का होगा