ये सनम भी घटोर कितने हैं बुत बने सुन रहे हैं जितने हैं सुब्ह-ए-पीरी है ग़ाफ़िलान-ए-जहाँ ख़्वाब-ए-ख़रगोश में हैं जितने हैं मौज-दर-मौज है तबाही में दम-ब-ख़ुद हैं हबाब जितने हैं बू-ए-गुल हो कि निकहत-ए-गुल हो ख़ाना-बर्बाद हैं ये जितने हैं तुर्फ़ा क़ातिल है जिस के मोरिद-ए-मल्ख़ बे-छुरी हैं हलाल जितने हैं ख़ुश-नवा ये है नाला-ए-बुलबुल हमा-तन-गोश गुल हैं जितने हैं ऐ सनम तू वो है नै-ओ-नाक़ूस दम तिरा भर रहे हैं जितने हैं हर रविश-ए-बाग़-ए-दहर में गुल-ए-तर दीदा-ए-मुंतज़िर हैं जितने हैं एक मैं क्या हूँ महव-ए-सूरत-ए-साफ़ हैरती आइने हैं जितने हैं कुल ग़ज़ल एक क़ाफ़िया ऐ 'शाद' शेर मायूब हैं ये जितने हैं