ज़रा देखना ख़ाकसारी हमारी मिली ख़ाक में ख़ाक सारी हमारी उसे हश्र में ऐ ख़िज़र देख लेंगे अगर ज़िंदगी है तुम्हारी हमारी ये कहते हैं मिज़्गान-ए-तर को दिखा कर बुझी ज़हर में है कटारी हमारी वबाल-ए-जहाँ हैं ये आलम के ऊपर मरे पर भी है लाश भारी हमारी हमें तुम हो रूह-ए-रवाँ से ज़ियादा तुम्हें कुछ नहीं जान प्यारी हमारी बहम रह सकें किस तरह आग पानी निभे दोस्ती क्या तुम्हारी हमारी मरे पर भी ऐ 'शाद' तक़दीर बिगड़ी किसी ने न उक़्बा सँवारी हमारी